थोड़ा रुक-रुक के ही सही, मेरे मज़ार पर तुम आना।
फूल ही न सही, कुछ काँटे छोड़ जाना,
यह आख़री फरयाद मेरी, न भूल जाना।
मेरे मज़ार पर तुम आना, ज़रूर आना।
थोड़ा रुक-रुक के ही सही, मेरे मज़ार पर तुम आना।
तेरे इंतज़ार में मेरी रूह सिसकती होगी,
ज़िंदगी और मौत के दरमियान भटकती होगी।
आसूँ न सही, एक आध आहें ही लेकर आना।
मेरे मज़ार पर तुम आना, ज़रूर आना।
थोड़ा रुक-रुक के ही सही, मेरे मज़ार पर तुम आना।
मेरे साथ दफ्न होगी मेरी अधूरी चाहत,
मेरी हसरतों में लिपटी मेरी नाकाम मोहब्बत।
सिर्फ एक लम्हे के लिए अपना बनाने आना
थोड़ा झिझक के ही सही मेरी मज़ार पर तुम आना।
इक झलक के लिए ही सही, ज़रूर आना।
मेरे मज़ार पर तुम आना, ज़रूर आना।