थोड़ा सा

तेरी आँखों की नमी में थोड़ा सा मरता हूँ
तेरी मासूम हँसी में फिर थोड़ा सा जीता हूँ
तेरे इश्क़ की इनायत फिर भी मिलती नहीं।

मेरी जाँ तेरी जाँ में बसती है
मेरी साँसों में तेरी साँस दहकती है
मुझे प्यार की इजाज़त फिर भी मिलती नहीं ।

रहता हूँ मैं तुझी में खोया सदा
तेरी चाहत में खुद को भिगोया सदा
यूँ मुझे तुझसे कभी फुर्सत मिलती नहीं।

दिन भर रहता हूँ तुझमें सिमट कर
रात सपनों में जगता हूँ तुझसे लिपटकर
फिर भी यह हसरत क्यूँ कम होती नहीं।

तू मुझसे यूँ हैरान,
मैं खुद से यूँ परेशान,
हम दोनों को क्यूँ राहत मिलती नहीं?

तेरे इश्क़ में जलता हूँ तो परवाना कहते हैं लोग,
मर जाऊँगा तो दीवाना कहेंगे लोग,
मोहब्बत में शहादत कभी मिलती नहीं।